Saturday, June 13, 2015

घर के पहले वाला घर


 ये घर, घर बनने के पहले वाला घर,

जहाँ कई बार हँसना-हँसाना हुआ है,

कई-कई बार रोना-रुलाना हुआ है,

जहाँ बचपन पैदा हो खिलखिला चुका है

और मौत ने कई बार डेरा जमाया है.…

ये घर… घर बनाने वालों का एक घर।


बेरंग, भूरा-भूरा सा.…

ईंट और पत्थर भर का

दीवारे नहीं, बस छत सा कुछ है

पर है तो आखिर, ये घर

तेरा-मेरा होने से पहले वाला घर।


फिर कोई जजमान इसे खरीद लेंगे

धुला, रंगा-पुता के,

नए सोफ़े, बिस्तर और फूलदान लगाके,

गृह-प्रवेश होगा, और पूजा वगैरह.…  

कुछ ढोंग यूँ कि सब नया है.… 

बस, तेरे-मेरे मन को बहलाने के लिए

आखिर कभी जान पाएंगे क्या

ये घर, था बेघर, बेचारों का घर?

या घर, मदमस्त बंज़ारों का घर?