यूँ हावी हो जाते हैं
कि वे लगने लगते हैं… ख़ुद ज़िन्दगी !
फ़िर परवाह किसे कि वो जीवन
है एक सपना,
छणभँगुर, नश्वर |
कभी कभी के वे कुछ लम्हे,
जिनमे होता है एहसास
कई सदियाँ जी लेने का,
जब बीतते हैं
तब पाते हैं हम ख़ुद को
कई कोसों दूर उस हकीकत से –
जिससे निकाल कर ख़ुद को
चलाया था इस ख्याब में |
कभी कभी ये आँखे
यूँ ही बह जाती है,
अलग – थलग सी पड़ी पड़ी,
एक दूसरे से छुप छुप कर |
पहली को है ये दुःख कि ख्वाब वो प्यारा
टूट रहा है ह्यिदय के भीतर
और पश्च्याताप करे दूजी ये
ख्वाब सजाया ही क्यों था ?
कभी कभी कुछ सपने
बस यूँही हावी हो जाते हैं |
1 comment:
This is, by far, your greatest and the most mature creation...
Simply marvellous!!
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