तेरे जलने के बाद बची थी दो ही चीज़े -
राख-अस्थियों से भरा हुआ एक कलश पड़ा था,
जिन्हें विसर्जित कर आई पावन गंगा में;
और बची-खुची, कुछ कटी-कटी सी तेरी यादें,
दिन के हर एक पहर में लिपटी अलग-अलग सी,
जिन्हें बहा दिया है खून में अपने, हर एक नस में...
अब सुबह-सुबह जब भाग रही होती हूँ
तब तुम याद आते हो,
और कभी सोने के पहले आँखों में मंडरा जाते हो,
कभी बिना तौलिये स्नानघर से हाथ बढाऊ
वो हाथ वही पर थामे थामे से रो पढ़ते हैं,
कई बार यूँही मैं दरवाज़े को खोल के आऊं
इस आस में की तुम कहीँ से शायद लौट आये हो!
खाने की मेज़ सजाती कभी-कभी मैं
थाल तुम्हारे नाम सजा कर रुक जाती हूँ ,
कभी बच्चों को एक शून्य में पा स्तंभित होती
और कभी खुद शून्य में उस गुम हो जाती हूँ,
तुझे आस पास ना पा कर कई बार मरी हूँ,
पर पा कर अपने अंदर तुझको जी उठती हूँ
तेरे जलने के बाद बची हैं दो ही चीज़े,
कुछ कटे-कटे से हम हैं... और कुछ तेरी यादें!
9 comments:
that is some great blog i say!!! great thoughts.. yet again a fab one by the one n only! so proud of u!
Veryyy nice rohit
very nice rohit and it's a very touching to heart.
Rohit u made me cry. Just a feeling of loosing somebody made me shiver i just cant imagine the real pain..
-Neha (Modi) Mehta
i still cant c it man! :|
hmmmm.....that was nice.....my opinion is that we should not really express the pain that we have bared or witnessed....nevertheless.....a good one!!
Truly awesome words !
I like the depth of the emotions, expressed so subtly...! Touched.
i just accidentally visited your blog not knowing that it will have such an impact. can't stop reading "tujhe kuch pana chahta hoon" and "tere jalne ke baad." it's my life and my thoughts! i could never put in words but you did it! thanx for this amazing work!keep on writing!
Post a Comment