ये घर, घर बनने के पहले वाला घर,
जहाँ कई बार हँसना-हँसाना हुआ है,
कई-कई बार रोना-रुलाना हुआ है,
जहाँ बचपन पैदा हो खिलखिला चुका है
और मौत ने कई बार डेरा जमाया है.…
ये घर… घर बनाने वालों का एक घर।
बेरंग, भूरा-भूरा सा.…
ईंट और पत्थर भर का
दीवारे नहीं, बस छत सा कुछ है
तेरा-मेरा होने से पहले वाला घर।
फिर कोई जजमान इसे खरीद लेंगे
धुला, रंगा-पुता के,
नए सोफ़े, बिस्तर और फूलदान लगाके,
गृह-प्रवेश होगा, और पूजा वगैरह.…
कुछ ढोंग यूँ कि सब नया है.…
बस, तेरे-मेरे मन को बहलाने के लिए
आखिर कभी जान पाएंगे क्या
ये घर, था बेघर, बेचारों का घर?
या घर, मदमस्त बंज़ारों का घर?
No comments:
Post a Comment