ये मुलाकात एक साजिश है;
दिल में अरमान जगाने की,
नव ऋतू बयार बहाने की...
बड़े दिनों से सोच रहा था,
हर पल यूँही बीत रहा था
अरमान बिना कोई, प्यार बिना,
आगाज़ बिना, अंजाम बिना;
तुमसे मिलने के बाद, कहूँगा,
हरपल एक महफिल सी है,
सुर ताल सहित अब गाने की,
हर ताल पे नाच नचाने की...
हर पल संग यूँ रहते हो,
हर पल में अब तुम बसते हो,
तुम पास हो तब तो पास ही हो,
जब दूर हो तब भी रहते हो;
इन पलों को जीकर आज, कहूँगा,
अब रोम - रोम में शामिल है,
खुशबू तेरे साँसों की,
तेरे जिस्म, रूह, और बातो की...
एक पल में कितने पल जी लूँ,
हर पल में तुझको याद करुँ,
हर याद में तेरी बात करुँ,
हर बात में तुझसे बात करुँ;
उन बातों को सुनकर आज, कहूँगा,
अब इंतज़ार नामुमकिन है,
इस दिल ने है ये ख्वाहिश की,
कोई ख़बर हो तेरे आने की...
इत्तेफ़ाक जो कह भी दूँगा,
हर मौका ख़ुद एक ख्वाहिश है -
एक ख्वाहिश फ़िर - फ़िर मिलने की,
बस यूँही मिलते रहने की...
2 comments:
gud job bhaiya but it will b better to b little shorter.once again it is gr8.
Rohit,great writing....u have written owesome lines in every stories and every poem
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