Saturday, September 9, 2017

चल, इश्क़ मचाते हैं !


जान मेरे, इस रात चलो,
एक कथा सुनाते हैं,
खुद को रंग के एक दूजे में,
हम इश्क़ मचाते हैं।

आँखों में आँखें डाल-डाल,
मेरे होंठो को तू काट डाल,
ज़बान चढ़े नमकीन इश्क़,
यूँ गुथ जाएं एक-दूजे से,
मेरी कमर जकड, मेरी बांह पकड़,
यूँ आके समा जा मुझ में आज,
की घुट जाए, या घुल जाएँ
मर जाए, या हम जी जाएँ

तेरे हाथों के फिर जाने से
मेरा रोम-रोम बस कांप उठे,
यूँ चूम मुझे मेरे आशिक़ तू,
की बहक उठे मेरी रूह तक !
जो हवा गुजर जाए छू कर
वो हवा भी जल के राख़ बने
कुछ यूँ हो जिस्मों की गर्मी
तप, सोना हम-तुम बन जाएँ

तू खोल मुझे, मुझमे जी
ले उठा, पटक, तू रौंद मुझे
सिहरऊँ, सिमटूं तेरी बाहों में
कुछ जुड़ जाऊं, कुछ टूट पड़ूँ
तेरे होठ लगा मेरे कानों से,
कह दे फिर से, है इश्क़ तुझे,
तेरे अंग-अंग पर नाम मेरा
मेरी साँसे मैं तेरे नाम करूँ।  

दिलकशी नहीं, ये उन्स नहीं
दिल में व्यापित है आज अकीदत
झुक जाऊँ, घुटने टेक दूँ मैं,
मेरा इश्क़ इबादत है तेरी,
तू हाथ उठा दीवारों पर
पूजा कर लूं मैं शिव की आज,
मदमस्त हुए इन लम्हों का,
चल, एक जुनूँ मनाते हैं!

एक नयी-नयी, भीनी, बाँकी,
मुस्कान सजी मेरे होंठो पे,
कुछ यूँ कर तू नापाक मुझे,
सवत्र पाक मैं हो जाऊँ,
बेबाक़ मोहब्बत की ख़ुद को,
सजा मुकर्रर कर जाते हैं,
त्यौहार मनाते हैं, जाना,
चल, इश्क़ मचाते हैं !