Sunday, October 14, 2018

इश्क़, बेनाम (Love, unnamed)

इश्क़ है।
या इश्क़ जैसा,
कुछ तो है।
या इश्क़ के पहले जैसा कुछ?
या फिर,
इश्क़ के पहले और
इश्क़ हो जाने के बीच
का सा कुछ?
ख़ैर, चलो इसे बेनाम
छोड़ देते हैं,
नाम देंगे तो
ये कुछ हो जाएगा,
और कुछ हो गया,
तो कुछ हो कर
रहना पड़ेगा।
पर तुम और हम
रहने वाले कहा हैं?
बस आज भर का ही है,
फिर सब एक धुआँ,
तो आ लग जा गले,
कुछ यूँ, कि
तेरे जिस्म के हर हिस्से से
मेरा जिस्म रूबरू हो सके,
तेरे बदन की महक में,
कुछ यूँ सन जाऊँ,
फर्क न कर सकें कि
तू कौन और मैं कौन।
तेरे कंधे के ऊपर,
और गले से निचले वाले हिस्से पर
अपना नाम लिख दूँ
ताकि जब तू बूशर्ट पहने
तो कोई देख ना पाए,
पर तुझे इल्म रहे हर वक़्त
की मैं हूँ, वहाँ
तेरी हर गुज़रती साँस को
मेरे नाम में भिंगोता हुआ,
आ लग जा गले कुछ यूँ,
घुल जाए मेरी साँस
तेरी साँसों में, तेरे होंठ
डूब जाए मेरे स्वाद में,
की रूह मदमस्त हो
झूम उठे, और बेपरवाह
नाच उठे,
जैसे किसी सूफ़ी को
मिल गया हो उसका ख़ुदा।
इसके पहले की उठ कर,
अपनी-अपनी राह
चल पड़े, ऐ जान मेरे,
आ कर लें सजदा
हमारे बेनाम इश्क़ का।