Sunday, October 14, 2018

इश्क़, बेनाम (Love, unnamed)

इश्क़ है।
या इश्क़ जैसा,
कुछ तो है।
या इश्क़ के पहले जैसा कुछ?
या फिर,
इश्क़ के पहले और
इश्क़ हो जाने के बीच
का सा कुछ?
ख़ैर, चलो इसे बेनाम
छोड़ देते हैं,
नाम देंगे तो
ये कुछ हो जाएगा,
और कुछ हो गया,
तो कुछ हो कर
रहना पड़ेगा।
पर तुम और हम
रहने वाले कहा हैं?
बस आज भर का ही है,
फिर सब एक धुआँ,
तो आ लग जा गले,
कुछ यूँ, कि
तेरे जिस्म के हर हिस्से से
मेरा जिस्म रूबरू हो सके,
तेरे बदन की महक में,
कुछ यूँ सन जाऊँ,
फर्क न कर सकें कि
तू कौन और मैं कौन।
तेरे कंधे के ऊपर,
और गले से निचले वाले हिस्से पर
अपना नाम लिख दूँ
ताकि जब तू बूशर्ट पहने
तो कोई देख ना पाए,
पर तुझे इल्म रहे हर वक़्त
की मैं हूँ, वहाँ
तेरी हर गुज़रती साँस को
मेरे नाम में भिंगोता हुआ,
आ लग जा गले कुछ यूँ,
घुल जाए मेरी साँस
तेरी साँसों में, तेरे होंठ
डूब जाए मेरे स्वाद में,
की रूह मदमस्त हो
झूम उठे, और बेपरवाह
नाच उठे,
जैसे किसी सूफ़ी को
मिल गया हो उसका ख़ुदा।
इसके पहले की उठ कर,
अपनी-अपनी राह
चल पड़े, ऐ जान मेरे,
आ कर लें सजदा
हमारे बेनाम इश्क़ का।

Tuesday, June 26, 2018

बारिश के बाद

वो बेजोड़ गर्मी के बाद
घमासान बारिश आती है ना,
तब एक जलता शहर,
टूट-फूट कर भी,
कुछ यूं हरा हो जाता है,
जैसे बहने दिया हो
शहर के सारे शमशान को।
या यूं कह लो, जैसे
शहर के सारे शमशान बह गए,
बहने 'देने' जैसी कोई बात ही कहाँ?
मेरी इज़ाज़त के लिए
थोड़े न रुकते हैं वो,
बस, बह चले, तो बह चले!
फिर आती है ज़िन्दगी, दबे पाँव
रातरानी की भीनी खुशबू में लिपटी,
खिड़की के एक कोने से।

कुछ ऐसे ही, खिड़की पर बैठे,
कल रात, कुछ यूं रोया चाँद,
मन, और मन के मलाल बह गए।
कुछ आधी-अधूरी हसरतें,
कुछ ख्वाब, जो बहुत हिम्मत कर देखे थे,
इसी खिड़की पर बांटी वो हँसी और ठिठोलियाँ
और एक-दूसरे से न जाने कितनी बार
पूछ लेना - खाने में क्या खायोगे?
वो सारे सवाल, और उनके जवाब बह गए,
इश्क़, और इश्क़ के गुलाल बह गए।

अब सब शांत है,
या कुछ शांत है, और कुछ
हो जाना चाहता है
थक कर चूर सा,
बस, अब थोड़ा मुस्कुराना चाहता है।