Saturday, April 5, 2008

कल

किस्सों एवँ कविताओं का
संग्रह लगता मेरा जीवन,
जब अपने ही इतिहास के पन्ने
पलट रहा हूँ, पलट रहा हूँ ।
हर पन्नों मे कितने किस्से,
कितनी सारी कवितायें हैं;
कुछ सीधी-सीधी बातें हैं,
कुछ टेढ़ी संरचनाएं हैं;
जब अपने ही इतिहास के पन्ने
पलट-पलट कर देख रहा हूँ,
तब अर्थहीन कवितायें लगती,
कुछ किस्सों को भूल चला हूँ ।

आज पुराने, कई ज़माने
देख रहा हूँ फ़िर से जीकर,
जब अपनी यादों के गलियारे में
भटक रहा हूँ, भटक रहा हूँ ।
ढूंढ रहा हूँ उस
क्षण को,
जिस
क्षण में भूला था मकसद,
जो ख़ुद ने चुना था - ख़ुद के लिए,
जो ख़ुद ही भूला - किसके लिए?
जब अपनी यादों के गलियारे में
भटक-भटक कर घूम रहा हूँ,
तब सोच रहा, किस राह चला था,
आज यहाँ किस राह खड़ा हूँ?

1 comment:

Tulika said...

Yet another good creation!! Something everyone can relate to... Now lets see what can we call it... "AntarDrishti"??? "Manan"??? "Ateet"??? "Parchhayi"??? or simply "Kal"???