Tuesday, June 26, 2018

बारिश के बाद

वो बेजोड़ गर्मी के बाद
घमासान बारिश आती है ना,
तब एक जलता शहर,
टूट-फूट कर भी,
कुछ यूं हरा हो जाता है,
जैसे बहने दिया हो
शहर के सारे शमशान को।
या यूं कह लो, जैसे
शहर के सारे शमशान बह गए,
बहने 'देने' जैसी कोई बात ही कहाँ?
मेरी इज़ाज़त के लिए
थोड़े न रुकते हैं वो,
बस, बह चले, तो बह चले!
फिर आती है ज़िन्दगी, दबे पाँव
रातरानी की भीनी खुशबू में लिपटी,
खिड़की के एक कोने से।

कुछ ऐसे ही, खिड़की पर बैठे,
कल रात, कुछ यूं रोया चाँद,
मन, और मन के मलाल बह गए।
कुछ आधी-अधूरी हसरतें,
कुछ ख्वाब, जो बहुत हिम्मत कर देखे थे,
इसी खिड़की पर बांटी वो हँसी और ठिठोलियाँ
और एक-दूसरे से न जाने कितनी बार
पूछ लेना - खाने में क्या खायोगे?
वो सारे सवाल, और उनके जवाब बह गए,
इश्क़, और इश्क़ के गुलाल बह गए।

अब सब शांत है,
या कुछ शांत है, और कुछ
हो जाना चाहता है
थक कर चूर सा,
बस, अब थोड़ा मुस्कुराना चाहता है। 

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