Thursday, December 11, 2008

कभी कभी...

कभी कभी कुछ सपने
यूँ हावी हो जाते हैं  
कि वे लगने लगते हैं… ख़ुद ज़िन्दगी !
फ़िर परवाह किसे कि वो जीवन 
है एक सपना,
छणभँगुर, नश्वर |

कभी कभी के वे कुछ लम्हे,
जिनमे होता है एहसास 
कई सदियाँ जी लेने का,
जब बीतते हैं 
तब पाते हैं हम ख़ुद को 
कई कोसों दूर उस हकीकत से –
जिससे निकाल कर ख़ुद को 
चलाया था इस ख्याब में | 
कभी कभी ये आँखे 
यूँ ही बह जाती है,
अलग – थलग सी पड़ी पड़ी,
एक दूसरे से छुप छुप कर |
पहली को है ये दुःख कि ख्वाब वो प्यारा 
टूट रहा है ह्यिदय के भीतर
और पश्च्याताप करे दूजी ये 
ख्वाब सजाया ही क्यों था ?

कभी कभी कुछ सपने
बस यूँही हावी हो जाते हैं |

1 comment:

Tulika said...

This is, by far, your greatest and the most mature creation...
Simply marvellous!!